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आपकी आँखें क्या कहती है, देर होने से पहले समझ लें। हमारे साथ है डॉ. अनसुआ गांगुली कपूर ये कंसलटेंट ओफ्थल्मिक प्लास्टिक सर्जरी एंड ऑक्युलर ऑन्कोलॉजी, एल वी प्रसाद इंस्टिट्यूट, विजयवाड़ा, भारत से हमें बताएँगी की आँखों के इन लक्षणों का क्या अर्थ हो सकता है…
1.लिड नोड्यूल – पलक की त्वचा की परत है जो अंदर की आँख को कवर करती है और सुरक्षा देती है। पलक की त्वचा पर कोई गाँठ या नोड्यूल होना आमतौर पर या तो सूजन / संक्रमण या शायद ही कभी कभार एक ट्यूमर, जो सौम्य (गैर-कैंसर) या घातक (कैंसर) हो सकता है।
पलक की त्वचा में गाँठ के कारण:
स्टाय पलक की त्वचा के कोने में लाल रंग का दर्द देनेवाला नोड्यूल होता है जो मवाद(पस) होने पर पीले धब्बे के साथ दिखता है। ये देखने में बड़ा नहीं होता पर दर्द बहुत देता है। ये पलकों के हेयर फॉलिकल ग्लैंड(ज़ाएस ग्लैंड) में बैक्टेरियल(स्टैफ़ायलोकोकस) संक्रमण के कारण होता है।
नेत्रवर्त्मग्रन्थि/पलकों की गिल्टी: ये दर्द न देनेवाली सख़्त गोल गाँठ होती है जो अक्सर पलकों पर आती है पर कोनों के पास नहीं आती है। ये दर्द नहीं देती और अक्सर हफ़्तों या महीनों तक बनी रहती है जब तक मरीज़ डॉक्टर को न दिखाएँ। यह पलकों के तेल ग्लैंड्स(मेंबोमियन ग्लैंड्स) के ब्लॉकेज और भीतर स्राव के जमा होने के कारण होता है। अक्सर मरीज़ों में समान घावों का एक पिछला इतिहास होता है, क्योंकि वे संवेदनशील व्यक्तियों में बार बार आते हैं।
इन गाँठों/नोड्यूल्स के बनने में अलग अलग कारण शामिल हो सकते हैं- धूल भरे माहौल में काम करना, आँख की अपवर्तक त्रुटियों जिनका इलाज न हुआ हो, बारीक या महीन काम, एक्ने रोसैया, ब्लेफेरिटिस, कंजक्टिविटिस, सेबोरिआ जैसे आम संक्रमण या कुपोषण और डायबिटीज मेलिटस जैसे प्रणालीगत रोग।
अलग अलग पलक के सौम्य(बिनाइन) ट्यूमर पलक पर पानी के बुलबुले की तरह गाँठ के रूप में, पिग्मेंटेड ऊँगली जैसे उभार जिनकी सतह समतल नहीं होती(मस्सा, केराटिन हॉर्न्स), पलक के कोने में छोटा पिग्मेंटेड उभार(आयलिड नेवस), या हल्के पीले डिस्क जैसे उभार (जैंथीलास्मा) के रूप में दिखते हैं। ये बहुत ज़रूरी है कि आप पलकों के घातक कैंसरऔर आम गाँठों के बीच का फ़र्क़ समझे। उसी जगह बार बार सूजन आना, पलकों का गिरना, सतह पर अल्सर या गाँठ से खून निकलना, सतह पर मोटी रक्त वाहिकाएँ या पलक के अंदर और बाहर दोनों में होना खतरे की निशानियाँ हैं।
इलाज:
स्टाय और नेत्रवर्त्मग्रन्थि/पलकों की गिल्टी अक्सर कोई नुक्सान नहीं देता है हफ़्तेभर में ख़ुद ही ठीक हो जाते हैं, पर सही डायग्नोसिस और जल्दी इलाज कराने के लिए डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी है। आप दिन में 3 या 4 बार गर्म सेंक देकर इसे जल्दी ठीक कर सकते हैं। पलकों की त्वचा पर आँखों का एंटीबायोटिक मरहम लगाने से ये और जल्दी ठीक हो सकता है। लगातार नेत्रवर्त्मग्रन्थि/पलकों की गिल्टी के मामले में, स्टेरॉयड्स का इंट्रालम्प इंजेक्शन या घाव की भीतरी सतह पर एक छोटा सा छेद भी दिया जा सकता है।
पलकों के सौम्य घाव तकलीफ़ नहीं देते ऐसा कहा जा सकता है। पर इनका होना अगर आपको सुन्दर दिखने से रोक रहा है या इससे आपकी दृष्टि में दिक्कत आ रही है, तो इसे आसानी से हटाया जा सकता है। घातक कैंसर के घावों के लिए, ये बहुत ज़रूरी है कि इसका इलाज आँखों के कैंसर स्पेशलिस्ट से करवाए, पलक की प्लास्टिक सर्जरी के बाद सामान्य त्वचा मार्जिन की कुछ मात्रा के साथ घाव को पूरी तरह से हटा दिया जाता है।
2. पलकों की ट्विचिंग – आँख के आसपास की माँसपेशियाँ आमतौर पर स्वैच्छिक नियंत्रण में होती हैं। आँख या पलकों की ट्विचिंग एक ऐसी स्थिति है जहाँ ये माँसपेशियाँ असामान्य रूप से कार्य करती हैं और दिमाग के सीधे नियंत्रण में नहीं होती हैं।
पलकों की ट्विचिंग के प्रकार:
सौम्य पलकों की ट्विचिंग(मायोकायमिया)-इसमें पलकें फड़फड़ाती रहती है, अक्सर नीचे की पलकें या कभी कभी ऊपर की पलकें। मरीज़ को पलकों का कूदना महसूस होगा पर देखने वाले को कुछ नहीं दिखेगा। ये ट्विचिंग अक्सर कुछ सेकंड या कुछ घंटों तक होती है या कभी कभी महीनों तक भी होती पर ये बिना किसी इलाज के ख़ुद ही ठीक हो जाती है। ये अक्सर थकान, तनाव, शराब और कैफ़ीन से होता है।
बिनाइन एसेंशियल ब्लेफरोस्पाज़्म(BEB) – इस अवस्था में दोनों आँखें एक ही समय में एकदम से बंद होती हैं। यह स्वेच्छा से बंद पलक को खोलने में कठिनाई के साथ जुड़ा हो सकता है (पलक खोलने का अप्रेक्सिआ)। यह मस्तिष्क में अनियंत्रित नर्व सिग्नल्स के कारण होता है जो आँख की मांसपेशियों को उत्तेजित करता है। ऐंठन आमतौर पर नींद के दौरान कम हो जाती है और समय-समय पर विभिन्न शारीरिक गतिविधियों के साथ बढ़ या घट सकती है। BEB के फ़ीचर्स गाल, मुँह, जीभ या गर्दन (मैइज सिंड्रोम) के साथ-साथ कलाई की हलचल से जुड़ी हो सकती हैं।
हेमीफ़ेशियल स्पाज़्म – इस स्थिति में चेहरे के एक तरफ की माँसपेशियों में लगातार सिकुड़न होती है। यह चेहरे के एक तरफ की नर्व की जलन के कारण होता है, जिससे ऐंठन(स्पाज़्म) होती है।
सेकेंडरी ब्लेफेरोस्पाज़्म-कभी-कभी आँखों की जलन (आमतौर पर ड्राई आय) या कुछ दवाओं (मनोरोग दवाओं) के कारण मजबूरन पलक बंद हो जाती है।
इलाज:
लगातार ट्विचिंग को इलाज की ज़रूरत हो सकती है क्योंकि पलक के बार-बार बंद होने से रोगियों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ, दृष्टि में बाधा से प्रभावित होती है। ब्लेफ़ेरोस्पाज्म का कोई इलाज नहीं है और उपचार केवल लक्षणात्मक है। न्यूरोलॉजिस्ट कुछ ओरल दवाइयाँ दे सकते हैं पर वो मरीज़ों के ख़ास काम नहीं आती। बोटुलिनम न्यूरोटॉक्सिन इंजेक्शन इसके लक्षणों को टेम्पररी तौर पर कम करने के लिए सबसे प्रभावी उपचार है। इंजेक्शंस को प्रभावित जगहों पर आउट पेशंट प्रक्रिया के तहत दिया जाता है। हालाँकि, जिन मरीज़ों पर ओरल दवाईयों या बोटुलिनम का असर नहीं होता, उनके लिए मायेक्टॉमी सर्जरी होती है जहाँ पलकें बंद करने के लिए ज़िम्मेदार माँसपेशियों को नेत्र शल्य प्लास्टिक सर्जन द्वारा हटाया जाता है। गंभीर प्रतिरोधी मामलों में अंतिम विकल्प है न्यूरोसर्जरी
3.ड्रूपी पलकें– आम तौर पर हमारी ऊपरी पलक कॉर्निया(आँख के सामने की गोलाकार पारदर्शी परत) के 2 मिमी को कवर करती है। जब भी ऊपरी पलक इस स्तर से नीचे आती है, तो इस स्थिति को ड्रूपी पलक या टॉसिस के रूप में जाना जाता है।
ड्रूपी पलकों होने के कारण:
ड्रूपी पलकें, जन्म दोष, माँसपेशियों या नर्व विकार, चोट, पलक की गाँठ दबाने से या बस उम्र बढ़ने के कारण हो सकती है।
ड्रूपी पलकों की वजह से समस्याएँ:
ड्रूपी पलकों के कारण आदमी नींद में, थका हुआ और बूढ़ा नज़र आता है और इसकी तीव्रता बढ़ने पर देखने में दिक्कत आ सकती है . इसके कारण ज़रूरत से ज़्यादा माथे पर झुर्रियों, ऊँची बौंहे, सिरदर्द, आँखों की थकान, अगल बगल का देखने की क्षमता में कमी, ठोड़ी ऊँची होती है। बच्चों में गंभीर ड्रूप होने से, दृष्टि के विकास को बाधित कर सकता है जिससे लेज़ी आय (एमब्लिओपिक) हो सकता है, जिससे दृष्टि कम हो जाती है। बड़े लोगों में यह ज़्यादातर सुंदरता पर असर डालता है।
इलाज:
उपचार पर निर्णय लेने के लिए एक नेत्र शल्य चिकित्सक सर्जन द्वारा टॉसिस के कारण को पता करना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि कोई छुपा हुआ कारण है तो पहले इसका इलाज किया जाना चाहिए। टॉसिस में अधिकतर इलाज सर्जरी ही होता है। जिनकी सर्जरी नहीं की जा सकती, उनके लिए ऐसे चश्में हैं जो पलकों को उठाए रखते हैं (क्रच ग्लासेस), इनका भी उपयोग किया जा सकता है।
सर्जरी का समय:
बच्चों में अक्सर सर्जरी 4-5 साल की उम्र के बाद ही की जाती है ताकि बच्चा सहयोग कर सके और टॉसिस को ऑपरेशन से पहले नापा जा सके। एक नेत्र चिकित्सक के साथ विज़ुअल मॉनिटरिंग कराना अत्यंत महत्वपूर्ण है, अगर बच्चे को लेज़ी आय का विकास टालने के लिए टॉसिस की गंभीरता देखते हुए 3-12 महीने के अंतराल पर सर्जरी के लिए रुकाया गया है। हालाँकि, जहाँ टॉसिस विज़ुअल एक्सिस को कवर करता है, लेज़ी आय के विकास और बाद में दृष्टि की कमी को रोकने के लिए सर्जरी की सलाह दी जाती है। जब वयस्क लोग सुंदरता को लेकर चिंतित होते हैं, तब वो सर्जरी कराते हैं।
सर्जरी की तकनीकें :
ड्रूप की तीव्रता को देखते हुए, टॉसिस के लिए सर्जरी के प्रकार और कई सर्जिकल ऑप्शन उपलब्ध हैं। सौम्य ड्रूप होने पर पलकों के पीछे से टिशू को उठाया जाता है(म्युलरेक्टॉमी)। इस सर्जरी का कोई निशान नहीं पड़ता। मॉडरेट ड्रूप में माँसपेशियों को कसने की आवश्यकता होती है जो पलक (लेवेटर) को लिफ्ट करती है और ज़्यादातर त्वचा की तरफ से किया जाता है। इसका निशान ऊपरी पलक की त्वचा में ढँक जाता है। गंभीर ड्रूप के मामले में, पलकों की माँसपेशियों को कसना अक्सर असर नहीं करता, और इसीलिए पलकों को माथे की माँसपेशियों(फ्रंटालिस) से किसी स्ट्रिंग मटेरियल से जोड़ना ज़रूरी होता है ताकि पालक उठी रहे। इस सर्जरी(इसे टार्सो-फ्रंटल स्लिंग सर्जरी कहते हैं) में पलकों पर, बौहों और माथे के ऊपर छोटे निशान पड़ते हैं। स्लिंग सर्जरी परमानेंट नहीं होती और अक्सर पलकें कुछ सालों में झपकने से और ग्रैविटी के कारण ड्रूप हो जाती हैं और इसीलिए दोबारा सर्जरी करवानी पड़ती हैं। अक्सर टॉसिस सर्जरी में टाँकों को एडजस्ट होने में एक या दो सत्र लगते हैं (सर्जरी के बाद 1-6 हफ़्ते) ताकि वो दूसरी आँख जैसा दिख सके। गंभीर टॉसिस के मामले में, सुधार केवल सीधे देखने पर ही होता है। आँख नीचे देखने में ज़रा बड़ी दिखाई देती है। सोते समय, आँख पूरी बंद न होने की भी सम्भावना है।
4.बलजिंग/उभरी हुई आँखें – आम तौर पर हमारी ऊपरी पलक कॉर्निया(आँख के सामने की गोलाकार पारदर्शी परत) के 2 मिमी को कवर करती है और निचली पलक सिर्फ कॉर्निया को छूती है। इसलिए उभरी हुई आँखों की पहचान कॉर्निया के ऊपर या नीचे की आँखों की सफेदी दिखाई देने से होती है। कुछ लोगों की आँखें जन्म से ही बड़ी होती हैं, वो उनके लिए आम बात है। बड़ी आँखों का मतलब ये नहीं कि वो असामान्य उभरी हुई आँखें हैं।
उभरी हुई आँखें होने के कारण :
उभरी हुई आँखें किसी छुपे हुए गंभीर विकार का संकेत हो सकती हैं और ऐसे में आँखों के डॉक्टर की सलाह ली जानी चाहिए। आँखें सॉकेट से बाहर निकलती हैं या तो आँख के पीछे वाली माँसपेशियों, फैट्स या टिश्यू की सूजन के कारण जो थायरॉइड विकार(सबसे आम कारण) के कारण हो सकता है या फिर संक्रमण/सूजन के कारण, या किसी बढ़ती गाँठ(कैंसर वाली/गैर-कैंसर) के कारण जो आँख के पीछे वाले क्षेत्र में बन रही हो और आँख को आगे ढकेल रही हो। कभी कभार आँख पर चोट लगने से आँख के पीछे ख़ून जमा होता है जिससे आँख बाहर निकलती है।
समस्याएँ:
उभरी हुई आँखें कॉर्निया को सुखा देती हैं जिससे देखने में दिक्कत आती है और संक्रमण होने की सम्भावना होती है। गंभीर मामलों में ये ऑप्टिक नर्व पर दबाव बना सकती है जिससे देखना बंद हो सकता है। इन देखने की दिक्कतों के अलावा, दोहरा दिखना, दर्द, लाल होना, सूजन, आँख का सूखना, बेचैनी और किसी बाहरी चीज़ का आँख में होने का एहसास हो सकता है।
इलाज:
उभरी हुई आँखों का इलाज उसके होने के कारण पर निर्भर करता है। उभरी हुई आँखों का सबसे आम कारण एक ऑटोइम्यून डिज़ीज़(ग्रेव्ज़ डिज़ीज़) के कारण ओवरएक्टिव थायरॉयड ग्लैंड है। इस बीमारी के दो चरण होते हैं और इलाज उस चरण पर निर्भर है। पहले चरण में (18-24 महीने) दवाईयों से इलाज होता है (लुब्रीकेंट आयड्रॉप, ज़रूरत पड़ने पर ओरल और इंट्रावेनस स्टेरॉयड) हालाँकि, उभरी हुई आँखें आमतौर पर निष्क्रिय चरण में बनी रहती हैं और आँखों को वापस अंदर जाने के लिए ऑर्बिट का विस्तार(ऑर्बिटल डीकम्प्रेशन) करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है। संक्रमण या सूजन के मामलों में ओरल या इंट्रावेनस दवाईयाँ दी जाती है। अगर आँख के पीछे बनी हुई गाँठ के कारण आँखें उभरी हैं तो गाँठ को सर्जरी(ओर्बिटोटॉमी) से हटाया जाता है और गाँठ के बारे में पैथोलॉजी जाँच से पता किया जाता है। इन मामलों में आगे का उपचार बायोप्सी से गाँठ की जाँच करने पर होता है।